Friday 9 September 2022

तुम शायद सबकुछ भूल गये..........

*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी.........२*
वो चाँद कभी होले - होले
आग़ोश में यूँ आ जाता था
मैं उसका चेहरा पढ़ता था
मैं उसका सर सहलाता था
तेरी ज़ुल्फ़ के काले बादल से
जब रात हमारी होती थी
*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी......2*

तेरा हाथ पकड़कर कैम्पस में,
तुझे सैर कराया करते थे,
जब चाय पिलाकर मैत्री में
तुझे ग़ज़ल सुनाया करते थे
हर शाम सुहाने मौसम में
हम लंका जाया करते थे,
कभी पिया मिलन चैराहे पर
मुलाक़ात हमारी होती थी
*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी......2*

जब CL में तेरी ख़ातिर 
मुझे सीट बचानी पड़ती थी
तेरे नख़रे सहता था जब मैं
तू बिना बात के लड़ती थी
मेरा नोट्स चुराकर के जब तुम
चुपके चुपके पढ़ती थी
और कार्ड कभी जब चेक होता
फिर तू कितना घबराती थी
मेरा नाम बताकर बचने की
आदात तुम्हारी होती थी
*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी......2*

तुम याद करो जब VT पर 
घण्टों बैठा जाता था 
तुम कोल्ड कॉफी पीती थी
मैं छोला समोसा खाता था
और बस में बैठकर कैम्पस की
मुफ्त में घुमा जाता था 
बिन मौसम, बिन बादल,
जब बरसात हमारी होती थी
*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी......2*

तेरे लिए हेल्थसेन्टर में जब
झूठ बोलते थे जाकर
हम अपने नाम का सिरप भी 
तुझे पीलाते थे लाकर
तू कितना ख़ुश हो जाती थी
मुफ़्त की फिर दवा खाकर
बच्चों जैसी तब सारी 
हरकात हमारी होती थी
*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी.........२*

झूमा करते थे जाकर जब
सारे दिन स्पंदन में
घुमा करते थे जब हम
हर सन्डे को मधुबन में
कहीं किसी चौराहे पर
कभी किसी भी उपवन में
झूला झूलते थे इक संग
अक्सर हमतुम सावन में
बसन्त पँचमी की झाँकी 
बारात हमारी होती थी
*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी......2*

आज सुब्ह तुझे अस्सी पर
किसी और के संग देखा मैंने
ऐ मेरी जान मोहब्बत का 
इक नया रंग देखा मैंने
एक बिजली चमकी ऊपर से
और दिल शीशे सा टूट गया
हर बात समझ में आयी फ़िर
तू देर से क्यों आती थी और
तू जल्दी क्यों चल जाती थी
ये मुझको धोका देने की
बिसात तुम्हारी होती थी
*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी.........२*


*फ्रैंक हसरत*
*शोधछात्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय*

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तुम शायद सबकुछ भूल गये..........

*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी.........२* वो चाँद कभी होले - होले आग़ोश में यूँ आ जाता था मैं उसका चेहरा पढ़ता था मैं उसका सर सहल...