Wednesday 19 May 2021

असहाय! हूँ ....(कविता) #फ्रैंक_हसरत

असहाय* (कविता)

असहाय हूँ असहाय हूँ........2
कट गए हैं हाँथ-पाँव मेरे और
शरीर में जान भी बाक़ी नहीं
बुझ गया हो जैसे मन का दीपक 
 नयन में मेरे ऐसे अंधकार होने लगा
मैं किसी विधवा के जैसी हाय! हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ..........2

चुप खड़ी लाचार बेबस की तरह
मैं गुलामो की तरह बस जी रही
मेरी दुनियाँ मेरे बस में भी नहीं
इतनी बेबस इतनी मैं लाचार हूँ
जैसे खुटें में बंधी मैं गाय हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ..........2

मैं समंदर में किसी तूफान सी
बढ़ रहे तूफान में उफ़ान सी
है बला का शोर मेरे जिस्म में
है खामोशी किस क़दर अंदर मेरे
 कम पानी में डूबती इक नाय हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ.............2

हो रहा है क़त्ल हर कानून का
इंसान के हक़ का और जुनून का 
मेरी इज़्ज़त ताख पर रख दी गयी
मेरे ऊपर आरोप है मेरे खून का
मैं किसी झूठे की सच्ची रॉय हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ .........2

सूखे पत्तों की तरह गिरती रही
मैं जंगलों में दरबदर फिरती रही
मौत भी आई तो आई इस तरह
मरने के ख़ातिर भी मैं मरती  रही
ज़िन्दगी जीने का कोई  उपाय हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ.........2 

फ्रैंक हसरत
चंदौली-उत्तर प्रदेश
frankhasrat@gmail.com

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