Sunday 16 January 2022

कितना बेबस है मज़दूर.... ग़ज़ल

#ग़ज़ल

कितना    बेबस   है   मज़दूर
थक  कर  बैठा   है   जो  चूर

मिट्टी   मिट्टी   में   मिलता  है
फिर    काहे   को  है मग़रूर

उसकी   आँखें   मैखाना   हैं
देख    सभी    होते   मख़मूर

साथ वो सबकुछ ले जाता है
चूड़ी, बिंदिया, और   सिन्दूर

हर  सूँ  उसका   ही  चर्चा  है
लड़की   है    या   कोई   हूर

हिंदू - मुस्लिम ख़त्म करो भी
जो    कहिए   सब  है  मंज़ूर

सारी  दुनियाँ  घूम   चुका था
पीकर    वो    बासी    अंगूर

हसरत सबकुछ हार चुका है
बनने    में     थोड़ा    मशहूर

Frank Hasrat

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