Frank Hasrat
BHU
मेरी कहानी का कुछ अंश..........
"प्लेट लग गया भाई कुछ लाइयेगा....?
घराती में से एक ने ....जी बस एक मिनट
टीपू...अमाँ कब से लॉलीपॉप दिए जा रहे हो अब ला रहा हूँ तब ला रहा हूँ, म्या जल्दी करो.....ये कहकर टीपू कुछ वक्त खामोश रहने के बाद मोबाइल निकाल कर कुछ देखने मे मसरूफ हो गया ,मानो इस बात को वो भूल गया कि वो दस्तरख्वान पर तसरीफ फ़रमा है।
एकाएक वो मोबाइल रखकर ,झाड़ने लगा वो इस कदर बमबम हो गया हो मानो जाड़े के मौसम में भुकम्प आ गया हो , जैसे ठहरे हुए पानी मे तूफान अचानक से आ जाता है।
टेबल पर क़रीब दस लोग और
थे ,सब गरम खून नौजवान लड़के , उसपर 3 घण्टे का सफर करके पहुंचे थे और बेहशरम पेट कहाँ किसी का सुनता है,
खैर टीपू के इस तल्ख अंदाज़ को देखकर घरातियों के इज़्ज़त की बात आ गयी और टेबल पर दे दनादन काब का तांता लग गया ।
टेबल इस कदर काब से भरा पड़ा था जैसे बाढ़ आने पर गंगा मईया की गोद भर जाती है।
टेबल से चरर परर की आवाज़ आनी शुरू हो गयी थी,
दस भूखे शेर मानो एक ही शिकार पर टूट पड़े हों,
फिर क्या था दनादन काब को बदला जाने लगा ,और दूसरी तरफ हड्डियों की जनसंख्या भारत और चीन से भी आगे निकलती हुई दिखाई देने लगी ,और कुछ ही देर में आगे भी निकल गयी।
अब टेबल से घराती धीरे धीरे हटने लगे ,मानो जनाज़े को दफ़न करके लोग घर की तरफ निकल रहे हों,
देखते ही देखते लोगों में काना फूसी होने लगी सबकी निगाहें उसी टेबल पर जाकर टिक सी जाती थी,
ठीक उसी तरह जैसे गाँव मे किसी के घर कोई खूबसूरत लड़की शहर से मेहमान नवाज़ी के लिए आ गयी हो ।
और सारे लड़कों में कानाफूसी हो रही है और उसी लड़की को सब आंखे चियार के देख रहे हों ।
लेकिन टीपू का गैंग ताबड़तोड़ खाये जा रहा है ,
मानो गेल T20 मैच खेल रहा हो,
मामला इतना बढ़ गया कि एक वक्त टेबल पर सन्नाटा छा गया आवाज़े अब भी आ रही थी लेकिन चरर परर की नही बल्कि कानाफूसी की,
कुछ कह रहे थे कि पीकर आये हैं सब ,इसी लिए ....
कभी का खाये नही हैं.........
वग़ैरा.....वग़ैरा......!
खैर हर सुबह के बाद शाम का होना जिसतरह तय था उसी तरह सबने रस्म के तौर पर जर्दे की तरफ इस तरह लपके मानो डिविलियर्स का कैच लीन ने लपक लिया हो,...
.....शेष आगे....!
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