मैं उसे भूलने की ज़िद करता...?
ये दुआ रब से मांगता था मैं
लेकिन इतना तो जानता था मैं
मैं उसे भूल ही नहीं सकता
दूर मैं रह ही नहीं सकता
और कोशिश की भूल जाऊं मैं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता.....२
ऐसा लगता था आरज़ू है मेरी
मैं कोई गुल वो खुशबु है मेरी
उसके आने से मैं महक जाता
उसको देखे से मैं बहक जाता
डर हवा में कहीं न उड़ जाऊं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता....२
फिर भी मिलने की आस होती
भले ही वह मेरे पास होती है
एक उसके न मुस्कुराने से
सारी दुनियाँ उदास होती है
लिख ग़ज़ल कोई गुनगुनाऊँ मैं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता....२
मेरी यादों में एक कमी बनकर
मेरी आँखों की वो नमी बनकर
मेरी पलकों में फिर रहा है वो
मेरी अश्कों में गिर रहा है वो
उस मोती को कैसे रोक पाऊँ मैं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता....२
दिल जिगर नज़र में रहता है
एक परिंदा शजर में रहता है
मैं एक सन्नाटा हूँ सहरा का
वो एक हंगामा शहर में रहता है
कैसे मुमकिन है इन्हें मिलाऊँ मैं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता....२
फ्रैंक हसरत
No comments:
Post a Comment