Wednesday 19 May 2021

चलो भी अब! / फ्रैंक हसरत (कहानी)

VT पर ठीक 5 बजे मैं मिलूँगी......अंकित ने  हँसी को छिपाने के लिए इधर उधर देखने लगा...मैंने जो कहा सुना तुमने...??? हल्की सी हँसी के साथ अंकित ने जवाब दिया हाँ पाँच बजे कल....VT.... विटी मतलब विश्वनाथ मंदिर मैं आपको बताना भूल गया VT को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का दिल कहना ग़लत न होगा....रविवार शाम पाँच बजे....श्रेया ने अंकित से मिलने का वादा किया था ....रोज़ कितने दिल मिलते हैं यहाँ और चाय के गुच्चड की तरह कितने दिल टूट कर बिखरते भी हैं........अंकित ठीक 4 बजे पहुंच गया और श्रेया को हर आती जाती नौजवान और खूबसूरत लड़कियों में तलाश करता क़रीब क़रीब 45 मिनट में न जाने कितनी चाय पी और गुच्चड को ज़मीन पर गिराता और उसके टूटे हुए हिस्सों पर अपनी नज़रे गड़ाता लेकिन उसकी नज़रें श्रेया को ढूढना चाहती थी ......पाँच बज चुके थे......इस बीच अंकित के हाथ में ये सातवीं चाय का मटका था जिसको वो तोड़ना तो चाहता था लेकिन तोड़ नहीं रहा था.......5 बजकर पाँच मिनट हुए थे कि अंकित को किसी की आवाज़ सुनाई दी.....उसने पलट कर देखा तो....एक सतरह साल की निहायत खूबसूरत लड़की जिसके बाल घुँघराले और घने थे ब्लैक जीन्स और पिले रंग के टॉप में वो उगते सूरज की तरह थी.....उसके चेहरे पर लालिमा और लट दोनों थे.....गालो पर दोनों तरफ डिंपल पड़ रहे थे....रंग बिल्कुल साफ़ था......उसके अचानक से हाथ रखने से अंकित के मुँह से श्रेया का नाम निकल गया था....जी आप......आप कौन...उस सतरह साल की लड़की ने अंकित के इस सवाल से खिलखिला उठी अंकित को शदीद शर्मिन्दगी का एहसास हुआ......आप मुझे नहीं जानते??? माफ कीजियेगा मैं ऐसी ही हूँ  मुझे हँसी आ जाती है...वो श्रेया ने कभी मेरे बारे में नहीं बताया....???? नहीं तो...वैसे श्रेया है कहाँ?? अंकित ने हक़ जताते हुए पूछा....क्यों  कोई काम था आपको उससे??? उस घुँघराले बाल वाली लड़की ने पूछा....अंकित के पास कोई जवाब नहीं था............चलिए न चाय पीते हैं....अंकित बिना मन के हँसा.....और उस लड़की के पीछे हो लिए जैसे इंजन के पिछे डिब्बे चलते हैं...उसने अंकित को चाय जब दिया तो अंकित के हाथ में वो गुच्चड था जिसे अंकित तोड़ना चाह रहा था......अंकित ने पास रखे ड्रम में गुच्चड फेंका लेकिन वो असफल रहा और वो टूटकर बिखर गए...आसपास खड़े लोगों ने देखकर खूब हँसा जैसा कि आजकल लोग किसी की नाकामी पर हँसते हैं.......दोनों ने चाय पी बातें शुरू की कुछ देर तक यूँही टहलते रहे....अंकित खो गया था दुकान की लाईट जलनी शुरू हो गयीं थी सूरज भी अपने घर की तरफ जाने को तैयार था लेकिन अंकित के कानों में वही आवाज़....ठीक है कल विटी पर पाँच बजे.....गूँज रही थी...........श्रेया के आने की  बात जब उस लड़की ने कही तो अंकित उठ खड़ा हुआ चारो तरफ नज़रे घुमाई........पीछे मुड़ा तो श्रेया ठीक उसके सामने खड़ी थी........हाथ में सिंधुर की डिबिया और एक छोटा सा सुनहरा डिब्बा था.......श्रेया ने उस सतरह साल की लड़की की तरफ़ देखा और मुस्कुराते हुए बोली.....लो आज तुम्हारा ख़्वाब मुकम्मल हो जाएगा.......अंकित की निःशब्द खड़ा रह गया.........पीछे से किसी ने लड़के ने आवाज़ दी ओहो श्रेया डार्लिंग मैंने तुम्हें कहाँ नहीं ढूंढा................चलो भी अब!

फ्रैंक हसरत

1 comment:

तुम शायद सबकुछ भूल गये..........

*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी.........२* वो चाँद कभी होले - होले आग़ोश में यूँ आ जाता था मैं उसका चेहरा पढ़ता था मैं उसका सर सहल...