किसी भी फूल में निकहत न होगी
मिरे रब की अगर रहमत न होगी
तुझे कुछ इश्क़ में हासिल न होगा
कि दिल में जब तिरे ज़ुर्रत न होगी
बुझेगी आग नफ़रत की नहीं गर
तो ये दुनिया कभी जन्नत न होगी
जहाँ लाशों पे इतनी सिसकियाँ हो
वहाँ इंसान की क़ीमत न होगी
है मेरे घर का अब माहौल ऐसा
बुरी आदत बुरी आदत न होगी
ये मज़हब की लड़ाई छोड़ दो तुम
हमारे मुल्क़ में दहशत न होगी
कटे हर रात सजदे में तुम्हारी
कि इसके बाद कुछ 'हसरत' न होगी
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