[15/07/2017, 11:25 a.m.] शायर: हमारी अधूरी..नी
बारिश की हल्की हलकी बुँदे अभी शुरू हुई थी की मैं हास्टल से बाहर आ चूका था उस दिन मैं वक्त से थोडा लेट था तकरीबन 9 बज गए थे और मुझे लाइब्रेरी जाना था मैं हास्टल के गेट पर खड़ा था और आसमान से मोती रह रह के झड़ रहे थे गोया मेरी जान के आने की ख़ुशी में मोती बरस रहा हो
काफी वक्त गुजर जाने के बाद भी जब कोई नही दिखा ओ मैने इरादा क्र लिया की अब पैदल ही निकलना होगा मैं ब्रोचा चौराहे पर ही पहुंचा था की किसी के बाइक की आवाज लगी मैंने देखा और फौरन सामने मुह कर् लिया क्योंकि एक नहायत् खूबसूरत लड़की हरे रंग के सूट में स्कूटी से आ रही थी
बारिश के चन्द कतरे उसके बदन से इस तरह से टपक रहे थे मनो किसी हरे भरे दरख्त से मोती टपक रहे हों। माइन फिर देखा और सामने की तरफ जोर से चलने लगा उसने इतने में मुझे परख लिया वो समझ गयी की
मुझे लिफ्ट की जरूरत है मग़र उसके अंदर भी व्ही तूफ़ान था वही डर था जो मेरे अंदर था ।
लेकिन वो मुझसे कुछ ही गए बढ़ी थी की उसने स्कूटी रोककर अपने रेशम से जुल्फों को सवारते हुए अपनी झील सी आँखों से मेरे तरफ देखकर मुस्कुराने लगी ।
मैने सोचा हो सकता है रास्ता पूछने के लिए रुकी हो या किसी का इन्तेजार क्र रही हो लेकिन
जैसे ही मैं उसके सामने से गुजरा उसने घबराते हुए लहजे में कहा excusme कहाँ जा रहे हो मैंने पहले गौर से देख उसको फिर अचानक से बोला लिब्रेरी
चलो बैठो मई भी व्ही जा रही हूँ। ये सब एक ख्वाब सा लग रहा था लेकिन हकीकत था ।
मैं अभी कुछ ख पाता की उसने बहोत याराना अंदाज में कहा चलो अब बैठो भी
मैं बैठने से पहले इधर उधर देखा लेकिन बारिश की वजह से कोई दिख नही
उसने स्कूटी स्टार्ट की और बड़े सलीके से आगे बढ़ी अभी कुछ ही दूर गए थे की अचानक एक ब्रेकर पर उसने ब्रेक लगाया तो मेरा हाथ उसके कंधे पर चला गया मैंने फॉरन कहा माफ़ करियेगा वो ग़लती से ........हाथ
उसने फिर कहा क्या यार इतना चलता है
क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे ....वो कहकर मेरे जवाब का इंतज़ार करने लगी अभी मैं कुछ बोलता की उसने कहा लगता है मई तुम्हारे दोस्ती के लायक नही ।
ये सब इतना जल्दी हो रहा था मुझे यकीन नही हो रहा था।
मई बोला अरे नही ऐसी बात नही ये मेरे लिए खुसी की बात है।
अब हम दोस्त हो चुके थे
मैंने उसका नाम पूछा तो उसने कहा की.........नाम है आपका मैंने कहाँ
#हसरत तो उसने बहोत तारीफ की नाम की
इन सब बातों बातों में हम वि0टी0 पहुँच चुके थे
मैंने बनाना सेक के लिए कहा तो उसने मना किया लेकिन मेरे बार बार कहने पर वो तैयार हो गई।
और फिर बहोत सी बाते हुई और हमलोग मिलना रोज़ाना हो ही जाता था ।
मैं हास्टल के गेट पर आता तो वह मेरे इन्तेजार में खड़ी रहती थी ।
ये सिलसिला तकरीबन 3 महीनो तक चला वो भी लाइब्रेरी में ही जाती थी इस दरमियाँन हमारी दोस्ती कब प्यार में तब्दील हो गयी मालूम ही नही चला ।
लेकिन एक दिन मैं जब हास्टल के गेट पर आया तो वो नही थी मैंने कॉल ट्राई किया तो स्विच ऑफ़ मैं करीब दो घण्टे तक इन्तेजार करता रहा जब वो नही आई तो मैं पैदल ही
निकल गया लेकिन रस्ते भर पीछे इस उम्मीद से देखता जा रहा था की शायद वो आ जाये
जब भी किसी गाड़ी की आवाज लगती तो मुझे उसका ही एहसास होता
।मैं उस दिन लाइब्रेरी तो गया लेकिन उसके ही ख्याल में खोया रहा ।
रात भर नीद नही आयीं छत से बार बार हास्टल के गेट पर देख रहा था लेकिन वो नही आई।
मई आज भी उसका इन्तेजार उसी सिद्दत से क्र रहा हूँ और मुझे उम्मीद है वो जरूर आएगी।
शुक्रियां
12/062017
फ्रैंक हसरत नौदरी
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