एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
मैं कैसे कहूँ कि, दूर है वो,
नज़रो में है,और दिल मे भी,
मैं तन्हा हूँ तो भी है वो,
वो साथ मेरे महफ़िल में भी।
मेरे जीवन की आगाज़ थी वो
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
रातों में थी जुगनू सी वो,
बागों में थी खुशबू सी वो
जब डाँट पड़े शरमा जाती,
फिर हसने पर मुस्काती वो
हर दिल मे करती राज थी वो।
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
वो गयी कहाँ कुछ खबर नही
जहाँ ढूढू मिलती उधर नही ।
थक जाता हूं पर थकन कहाँ
अब दिल को मिलता अमन कहाँ।
हर ज़ुबाँ पे नग़में साज़ थी वो
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
गर डॉट दिया तो रोती थी,
वो चुप चुप सी क्यों होती थी,
फिर हसके गले लगालो तो ,
वो धूप सी खिल भी जाती थी
क्यों चली गयी नाराज़ थी वो ?
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
क्यों अपनो को वो छोड़ गयी,?
हर ख़्वाब हर सपना तोड़ गयी,
सब खुश थे उसके होने पर ,
कभी हँसने पर कभी रोने पर
इस आँगन की सरताज़ थी वो
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
फ्रैंक हसरत .....
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