जख़्म ऐ दिल को भी न आराम दिया उसने ,
मेरी आँखों को लहू का इनाम दिया उसने।
जिसकी जुस्तजू में फिरे मारा मारा,
बेरहमी से फक़ीरी का मकाम दिया उसने।
खुशी में साथ ग़मों में बहोत दूर वो खुद भी रहा ,
बेवफाई का तन्हा ही मुझे इल्ज़ाम दिया उसने।
हसरत तेरे इश्क़ के जितने भी निशाँ थे,
किस बेरुखी से लौटा सारे सामान दिया उसने ।
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