Sunday 23 May 2021

एक बस चाय ही की लत रख्खी.....फ्रैंक हसरत

हमने लफ़्ज़ों में मिल्कियत रख्खी
शायरी   में  भी   सल्तनत  रख्खी

रब ने सबकुछ अता किया उसको
जिसने  अच्छी सदा नियत रख्खी

प्यार  हद  से  किया  ज़ियादा पर 
हमने अपनी भी अहमियत रख्खी 

घर   में   दीवार   पड़   गयी   जैसे
बाप  ने  मर  के उसपे  छत रख्खी

मैंने  बच्चों   को  भी  पढ़ाया  और
जीने  मरने  की  भी बचत  रख्खी

वो जो  ख़ुद को ख़ुदा समझता था
उसने  मेरी   भी   ख़ैरियत  रख्खी

हूँ  मैं  ममनून  अपने  दुश्मन  का 
एक  उसने  ही  असलियत रख्खी

दिल को तो टूटना ही था इक दिन
उसने जब नींव ही  ग़लत  रख्खी 

और  बाक़ी   नहीं   कोई   हसरत
एक  बस चाय ही की  लत रख्खी

1 comment:

तुम शायद सबकुछ भूल गये..........

*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी.........२* वो चाँद कभी होले - होले आग़ोश में यूँ आ जाता था मैं उसका चेहरा पढ़ता था मैं उसका सर सहल...