हमने लफ़्ज़ों में मिल्कियत रख्खी
शायरी में भी सल्तनत रख्खी
रब ने सबकुछ अता किया उसको
जिसने अच्छी सदा नियत रख्खी
प्यार हद से किया ज़ियादा पर
हमने अपनी भी अहमियत रख्खी
घर में दीवार पड़ गयी जैसे
बाप ने मर के उसपे छत रख्खी
मैंने बच्चों को भी पढ़ाया और
जीने मरने की भी बचत रख्खी
वो जो ख़ुद को ख़ुदा समझता था
उसने मेरी भी ख़ैरियत रख्खी
हूँ मैं ममनून अपने दुश्मन का
एक उसने ही असलियत रख्खी
दिल को तो टूटना ही था इक दिन
उसने जब नींव ही ग़लत रख्खी
और बाक़ी नहीं कोई हसरत
एक बस चाय ही की लत रख्खी
👌👌
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