Sunday 23 May 2021

क्षणिक सुख की प्राप्ती

*क्षणिक सुख की प्राप्ती* .......
प्रशंसा(तारीफ़) मिठाई के सामान है जो क्षणिक सुख प्रदान करता है और आसानी से मिल जाता है और इसके ज्यादा सेवन से गंभीर बीमारी भी हो सकती है परन्तु आलोचना(तनक़ीद) कड़वी नीम के मानिंद है। जिसके सेवन से इंसानी खून बीमारी मुक्त हो जाता है। कड़वी चीजे हमेशा बुरी नही होती। ठीक उसी तरह आलोचना भी क्षणिक दुःख तो देता है किंतु यह इंसान के सोचने समझने की क्षमता को बुनियादी तौर पर मज़बूत बना देता है। मौजूदा दौर में इंसान को क्षणिक सुख की लत लग गयी है। इस वक़्त हर किसी को दूसरों से ज्यादा बेशर्म होने की होड़ लगी है, लाइक कमेंट और थम्सअप वाले अंगूठे के लिए बड़े बड़े लोग साड़ी सलवार पहन के नाचने और लिपसिंग करने के लिये मजबूर हैं। ऐसा नही है कि ये लत जवानों तक महदूद है बल्कि बड़े, बुज़ुर्ग, स्वघोषित पीर, मौलवी, पण्डित, पुलिस आलाकमान भी इस बीमारी की जद में बराबर मुब्तिला(हिस्सेदार) हैं। मेरा मानना है कि जिसको ये लत लग जाती है उनको सिर्फ तारीफ सुनने से मतलब होता है चाहे वो कैसी भी हो। इस बीमारी ने अबतक न जाने कितनों को मौत के घाट उतार दिया फिर भी लोग समझने को तैयार नहीं वो तो भला हो सरकार का कि जिसने ऐसे वाहियात एप्लिकेशन पर पाबन्दी लगा दी। ऐप बैन होने के बाद तो कुछ लोग बौरा गए उनको दिन में तारे दिखने लगे बेचैनी ऐसी की सरकार को कोसने लगे लेकिन हमारी सरकार तो अच्छी बातों को सुनती ही नहीं यह तो फिर भी  बुरी ही थी। हमारे नौजवान पीढ़ी के अंदर इस लत के बाद जो दूसरी लत है वो है नशा, मेरे हिसाब से तंबाकू और तारीफ़ में बहुत समानताएं हैं। दोनों इंसान को अंदर से खोखला कर देती हैं। दोनों के आदती को यही लगता है कि उन्हें इस चीज़ की लत(आदत) नहीं, और तारीफ़ और तम्बाकू दोनों एक साथ चलते हैं। तारीफ मानसिकता का पतन करती है तो नशा जिस्मानी ताकत को कम कर देता है फिर ऐसे व्यक्ति पर किसी बात का कोई असर नहीं होता। ऐसे व्यक्ति को समझाना बहुत मुश्किल  हो जाता है। अधिकांश लोग कोशिश भी नहीं करते हैं कि इन खोखली और क्षणिक सुख देने वाली चीजों से बाहर निकल जाएँ। इससे पीड़ित व्यक्ति को  तनक़ीद(आलोचना) ज़हर की तरह लगती है। ऐसे लोग आसानी से देखने को मिल जाते है क्योंकि ये हमारे आस पास ही मौजूद हैं और सीने में हवा भर कर कहते ये नशा तो आज चाहे आज छोड़ दे लेकिन यक़ीन करिये ये उतना ही मुश्किल है जितना अपनी जीभ से अपनी नाक को छूना। कुछ लोग तो हद ही कर देते हैं। जो यह कहते नज़र आ जाएंगे  कि मुझे अपनी तारीफ़ सुनना बिल्कुल  पसन्द नहीं, लेकिन मुझे नहीं लगता ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसे तारीफ़ पसन्द नहीं और यह स्वभाविक है ये होना भी चाहिए लेकिन जब किसी चीज़ की अति हो जाती है तो वह भयंकर बीमारी का रूप धारण कर लेती है। वहीं  आलोचनाएं व्यक्तित्व को निखारने और संवारने का काम करती हैं, जैसे माली बाग़ में कटाई छटाई और सिंचाई करके एक सौन्दर्य बाग़ का निर्माण करता है। तनक़ीद भी ऐसी ही है।जैसे तारीफ़ क्षणिक सुख प्रदान करता है वैसे ही तनक़ीद क्षणिक दुःख। अब यह आप पर है कि आपको क्षणिक सुख चाहिए या सुखद जीवन। थोड़ी बहोत प्रशंसा भी ज़रूरी है हौसला अफ़ज़ाई के लिए लेकिन शर्त यह है कि इंसान उसका आदि न हो.......अगर आप भी इस मीठे ज़हर के आदि हो चुके हैं तो  अपने अंदर से इस ज़हर को जितना जल्द हो सके दूर कर लें। और ख़ुद की तरक़्क़ी के लिए तनक़ीद का रास्ता अपना लें.........

@Frankhasrat
चंदौली-उत्तर प्रदेश

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