Saturday 27 January 2018

एक दोस्त की याद में .........😢

सुनो यार तुम क्या थे, क्या हो गए ,
इस कदर क्यों मुझसे, खफा हो गए।

क्या ख़ता हो गयी कुछ तो बोलो ज़रा,
छोड़कर क्यों वफ़ा , बेवफा हो गए ।

पहले ऐसे न थे मान जाते थे तुम,
मुझसे ही क्या कोई  , गिला हो गए ।

माफ् करदे मुझे आजा अब लौटकर,
प्यार का प्यार से सिलसिला हो गए।

तुझको पाने की हसरत फिर दिल मे हुई,
पाया तुझको था मैंने,तुम जुदा हो गए।

फ्रैंक हसरत

Wednesday 24 January 2018

जख़्मी दिल......

जख़्म ऐ दिल को भी न आराम दिया उसने ,
मेरी आँखों को लहू का इनाम दिया उसने।

जिसकी जुस्तजू में फिरे मारा मारा,
बेरहमी से फक़ीरी का मकाम दिया उसने।

खुशी में साथ ग़मों में बहोत दूर वो खुद भी रहा ,
बेवफाई का तन्हा ही मुझे इल्ज़ाम दिया उसने।

हसरत तेरे इश्क़ के जितने भी निशाँ थे,
किस बेरुखी से लौटा सारे सामान दिया उसने ।

Rachha Bandhan

नन्हे से हाथों में एक जान है बन्धन,
बहनों के रछा का सुल्तान है बन्धन।

भाई का सर पर रहे हाथ हमेशा,
बहनों का इतना सा अरमान है बन्धन।

हर धर्म मे होती है इस दिन की आरजू,
न सिख न हिन्दू न मुसलमान है बन्धन।

नन्ही सी रेशम के ये डोर ही तो है,
सुरक्षा के लिए लेकिन पहलवान है बन्धन,

जो इस के वसूलों की कद्र न करें,
ये उनके स्वभिमान का अपमान है बन्धन।

होती है सभी के दिल मे इसकी #हसरत
रिश्तों को करे ताजा जो ,ईमान है बन्धन।

हसरत नौदरी

Rchha Bandhan की हार्दिक सुभकामनाये।

बाज़ार इश्क में .....

लगती नही कभी जब बाज़ार इश्क में ,
फिर क्या वजूद तेरा खरीदार इश्क में।

नज़रों से इश्क की शुरुआत कर बैठे हो जब,
करने में डर रहे हो क्यों इजहार इश्क में।

पहली दफा हुआ था तो सोचा कि अब न हो,
इतने हुए थे हम तो  लाचार  इश्क़ में ।

कहते हैं लोग मंजिलें मिलती नही कभी,
लाजमी है बेवफ़ाई मेरे यार इश्क में ।

इश्क मतकर इश्क मतकर कहते रहे #हसरत,
खुद भी मग़र वो हो गये बीमार इश्क में ।

हसरत नौदरी

स्कूटी गर्ल

[15/07/2017, 11:25 a.m.] शायर: हमारी अधूरी..नी

बारिश की हल्की हलकी बुँदे अभी शुरू हुई थी की मैं हास्टल से बाहर आ चूका था उस दिन मैं वक्त से थोडा लेट था तकरीबन 9 बज गए थे और मुझे लाइब्रेरी जाना था मैं हास्टल के गेट पर खड़ा था और आसमान से मोती रह रह के झड़ रहे थे गोया मेरी  जान के आने की ख़ुशी में मोती बरस रहा हो
काफी वक्त गुजर जाने के बाद भी जब कोई नही दिखा ओ मैने इरादा क्र लिया की अब पैदल ही निकलना होगा मैं ब्रोचा चौराहे पर ही पहुंचा था की किसी के बाइक की आवाज लगी मैंने देखा और फौरन सामने मुह कर् लिया क्योंकि एक नहायत् खूबसूरत लड़की हरे रंग के सूट में स्कूटी से आ रही थी
बारिश के चन्द कतरे उसके बदन से इस तरह से टपक रहे थे मनो किसी हरे भरे दरख्त से मोती टपक रहे हों। माइन फिर देखा और सामने की तरफ जोर से चलने लगा उसने इतने में मुझे परख लिया वो समझ गयी की
मुझे लिफ्ट की जरूरत है मग़र उसके अंदर भी व्ही तूफ़ान था वही डर था जो मेरे अंदर था ।
लेकिन वो मुझसे कुछ ही गए बढ़ी थी की उसने स्कूटी रोककर अपने रेशम से जुल्फों को सवारते हुए अपनी झील सी आँखों से मेरे तरफ देखकर मुस्कुराने लगी ।
मैने सोचा हो सकता है रास्ता पूछने के लिए रुकी हो या किसी का इन्तेजार क्र रही हो लेकिन
जैसे ही मैं उसके सामने से गुजरा उसने घबराते हुए लहजे में कहा excusme कहाँ जा रहे हो मैंने पहले गौर से देख उसको फिर अचानक से बोला लिब्रेरी
चलो बैठो मई भी व्ही जा रही हूँ। ये सब एक ख्वाब सा लग रहा था लेकिन हकीकत था ।
मैं अभी कुछ ख पाता की उसने बहोत याराना अंदाज में कहा चलो अब बैठो भी
मैं बैठने से पहले इधर उधर देखा लेकिन बारिश की वजह से कोई दिख नही
उसने स्कूटी स्टार्ट की और बड़े सलीके से आगे बढ़ी अभी कुछ ही दूर गए थे की अचानक एक ब्रेकर पर उसने ब्रेक लगाया तो मेरा हाथ उसके कंधे पर चला गया मैंने फॉरन कहा माफ़ करियेगा वो ग़लती से ........हाथ
उसने फिर कहा क्या यार इतना चलता है
क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे ....वो कहकर मेरे जवाब का इंतज़ार करने लगी  अभी मैं कुछ बोलता की उसने कहा लगता है मई तुम्हारे दोस्ती के लायक नही ।
ये सब इतना जल्दी हो रहा था मुझे यकीन नही हो रहा था।
मई बोला अरे नही ऐसी बात नही ये मेरे लिए खुसी की बात है।
अब हम  दोस्त हो चुके थे
मैंने उसका नाम पूछा तो उसने कहा की.........नाम है आपका मैंने कहाँ
#हसरत तो उसने बहोत तारीफ की नाम की
इन सब बातों बातों में हम वि0टी0 पहुँच चुके थे
मैंने बनाना सेक के लिए कहा तो उसने मना किया लेकिन मेरे बार बार कहने पर वो तैयार हो गई।
और फिर बहोत सी बाते हुई और हमलोग मिलना रोज़ाना हो ही जाता था ।
मैं हास्टल के गेट पर आता तो वह मेरे इन्तेजार में खड़ी रहती थी ।
ये सिलसिला तकरीबन 3 महीनो तक चला वो भी लाइब्रेरी में ही जाती थी इस दरमियाँन हमारी दोस्ती कब प्यार में तब्दील हो गयी मालूम ही नही चला ।
लेकिन एक दिन मैं जब हास्टल के गेट पर आया तो वो नही थी मैंने कॉल ट्राई किया तो स्विच ऑफ़ मैं करीब दो घण्टे तक इन्तेजार करता रहा जब वो नही आई तो मैं पैदल ही
निकल गया लेकिन रस्ते भर पीछे इस उम्मीद से देखता जा रहा था की शायद वो आ जाये
जब भी किसी गाड़ी की आवाज लगती तो मुझे उसका ही एहसास होता
।मैं उस दिन लाइब्रेरी तो गया लेकिन उसके ही ख्याल में खोया रहा ।
रात भर नीद नही आयीं छत से बार बार हास्टल के गेट पर देख रहा था लेकिन वो नही आई।
मई आज भी उसका इन्तेजार उसी सिद्दत से क्र रहा हूँ और मुझे उम्मीद है वो जरूर आएगी।

शुक्रियां
12/062017
फ्रैंक हसरत नौदरी

ग़ज़ल

शायद अबतक वो वही बात लिए बैठा है,
चाय की केतली भी साथ लिये बैठा है।

हो गया है शहंशाहे हिन्दोस्तान मग़र,
दिल मे अबतक वही गुजरात लिए    बैठा है।

हसरत नौदरी

कहाँ जायेगी ...बेटी है आखिर कहाँ जायेगी?

एक बेटी घर से कहाँ जाएगी?

वो अम्मा की बातों पे लड़ना झगड़ना ,
वो अब्बा के सामने नखरे
उतारना,
भाई रूठ तन्हाई में रोना माँ से कहना ,
मैं एक दिन देखो चली जाउंगी,

एक बेटी घर से कहाँ जाएगी?
माँ के कामों में हाथ बटाना ,
भाई को वक्त पे खाना खिलाना,
पापा के के गुस्से को हसके भागाना,
ये खुशियाँ आंगन से कहाँ जाएंगी,
एक बेटी घर से कहाँ जाएगी?

बल्लू की शादी में..........अफ़साना

Frank Hasrat
BHU

मेरी कहानी का कुछ अंश..........

"प्लेट लग गया भाई कुछ लाइयेगा....?
घराती में से एक ने ....जी बस एक मिनट
टीपू...अमाँ कब से लॉलीपॉप दिए जा रहे हो अब ला रहा हूँ तब ला रहा हूँ, म्या जल्दी करो.....ये कहकर टीपू कुछ वक्त खामोश रहने के बाद मोबाइल निकाल कर कुछ देखने मे मसरूफ हो गया ,मानो इस बात को वो भूल गया कि वो दस्तरख्वान पर तसरीफ फ़रमा है।
एकाएक वो मोबाइल रखकर ,झाड़ने लगा वो इस कदर बमबम हो गया हो मानो जाड़े के मौसम में भुकम्प आ गया हो ,   जैसे ठहरे हुए पानी मे तूफान अचानक से आ जाता है।

टेबल पर क़रीब दस लोग और
थे ,सब गरम खून नौजवान लड़के , उसपर 3 घण्टे का सफर करके पहुंचे थे और बेहशरम पेट कहाँ किसी का सुनता है,

खैर टीपू के इस तल्ख अंदाज़ को देखकर घरातियों के इज़्ज़त की बात आ गयी और टेबल पर दे दनादन काब का तांता लग गया ।

टेबल इस कदर काब से भरा पड़ा था जैसे बाढ़ आने पर गंगा मईया की गोद भर जाती है।
टेबल से चरर परर की आवाज़ आनी शुरू हो गयी थी,
दस भूखे शेर मानो एक ही शिकार पर टूट पड़े हों,
फिर क्या था दनादन काब को बदला जाने लगा ,और दूसरी तरफ हड्डियों की जनसंख्या भारत और चीन से भी आगे निकलती हुई दिखाई देने लगी ,और कुछ ही देर में आगे भी निकल गयी।
अब टेबल से  घराती धीरे धीरे हटने लगे ,मानो जनाज़े को दफ़न करके लोग घर की तरफ निकल रहे हों,

देखते ही देखते लोगों में काना फूसी होने लगी सबकी निगाहें उसी टेबल पर जाकर टिक सी जाती थी,
ठीक उसी तरह जैसे गाँव मे किसी के घर कोई खूबसूरत लड़की शहर से मेहमान नवाज़ी के लिए आ गयी हो ।
और सारे लड़कों में कानाफूसी हो रही है और उसी लड़की को सब आंखे चियार के देख रहे हों ।

लेकिन टीपू का गैंग ताबड़तोड़ खाये जा रहा है ,
मानो गेल T20 मैच खेल रहा हो,
मामला इतना बढ़ गया कि एक वक्त टेबल पर सन्नाटा छा गया आवाज़े अब भी आ रही थी लेकिन चरर परर की नही बल्कि कानाफूसी की,
कुछ कह रहे थे कि पीकर आये हैं सब ,इसी लिए ....
कभी का खाये नही हैं.........
वग़ैरा.....वग़ैरा......!

खैर हर सुबह के बाद शाम का होना जिसतरह तय था उसी तरह सबने रस्म के तौर पर जर्दे की तरफ इस तरह लपके मानो डिविलियर्स का कैच लीन ने लपक लिया हो,...

.....शेष आगे....!

दोस्ती

एक दोस्त की शादी से लौटने में देर हो गयी उसवक्त रात के 12 बजे थे ठंड का मौसम था घँघोर अंधेरा चारो तरफ था मैं कदम कदम आगे बढ़ रहा था डर के मारे मेरे दिल की धड़कन ठंडी सर्द हवावों की तरह चल रहा था ,मैं मन में हलुमान चलीसा का जाप लगाता हुआ जल्दी जल्दी आगे बढ़ रहा था ,कुछ दूर ही बाधा था कि मुझे एहसास हुआ कोई मेरा पीछा कर रहा है , मैन पलट कर देखना चाहा लेकिन न जाने किसने मुझे मना किया मैं और तेज़ चलने लगा मेरी सांसे फूलने लगी तभी सामने धुंधली सी रोशनी दिखाई देती हुई महसूस हुई मेरी जान में जान आई ठंड और डर से मेरी जान निकल रही थी बस ये था कि किसी तरह ठिकाना मिल जाये ।
मैं जब रोशनी के क़रीब पहुंचा तो सामने रॉड जहाँ से घूमती है वही एक झोपड़ी नज़र आई मैने पास जाकर आवाज़ दिया ......
कोई है....? कोई है है ?...कोई है...?
अंदर से कुछ आवाज़ सुनाई न दी ...मैं जब पीछे मुड़ा ही था कि किसी के बॉस के लगे झोपड़ी के दरवाज़े के खोलने की आहट लगी मैन पलट कर देखा तो दरवाज़ा पूरा खुला था .....कौन है वहाँ...?
कोई है ? मै डरते हुए अंदर जाने लगा जब मैं अंदर गया तो कोई नज़र नही आया सामने एक टूटी हुई चारपाई पड़ी थी जिस पर गन्दे मैले बिस्तर पड़े थे ऐसा लग रहा था इस पर एक मुद्दत से कोई सोया नही है ,झोपड़ी भर झाले लगे थे लेकिन दिए में तेल भरा हुआ था और उसकी रोशनी बहोत तेज़ मालूम होती थी मैं और घबरा गया मैने हिम्मत करके दिया उठाने की ठानी मै दिये को हाथ लगाने वाला था कि आवाज़ आइ क्यो जी....किसे ढूंढ रहे हो...मैं सहम सा गया आवाज़ किसी ज़वान लड़की की मालूम पड़ती थी मैने पलट कर देखा तो लाल साड़ी पहने एक निहायत खूबसूरत और हसीन लड़की उसी टूटी चारपाई पर बैठी हाथों में अपने बालों की चोटी पकड़े चाभियों के गुच्छे कि तरह नज़ाकत से घुमा रही थी , मेरे माथे से पशीने की बूद टपक कर जब मेरे गालों पर गिरे तो मैं डर गया और झट से झोपड़ी के बाहर निकल ने के लिए मुड़ा ही था कि उसने मुझे पकड़ लिया और कुछ कहना चाहा, मैंने फौरन हाथ छुड़ाकर भागने लगा और तब तक भागता रहा जब तक करीब 10 मिनट बाद मेरे सामने एक बाइक आकर रुकी ,,,,,,
मनोज़ तुम......
इतना कहना था कि मैंने एक सास में ही सारी आपबीती कह डाली ....प्रकाश भी काफी डरा हुआ था ऐसा मालूम हो रहा है वह भी किसी आत्मा से पीछा छुड़ा रहा हो ....उसने डरते हुए कहा आओ बैठो जल्दी और सुनो ........प्रकाश तुम कहा जा रहे हो इतनी रात में .....
बोलोगे भी कुछ ...प्रकाश ने कोई जवाब न दिया तो मैंने अपने दोनों हाथों से सर्ट के कॉलर को उठा कर अपने कानों को ढककर अपना मुंह प्रकाश की पीठ में दबाकर बैठ गया जब मैंने मुंह प्रकाश की पीठ में सटाया तो उसकी धड़कने बहोत तेज़ चल रही थी ......गाड़ी अचानक रुकी मैंने जब कॉलर छोड़ा तो मेरा होश उड़ गया प्रकाश गाड़ी क्यों रोकी तुमने यहाँ........
प्रकाश दौड़कर झोपड़ी में गया..और उस लाल रंग की साड़ी वाली औरत को पकड़ कर दौड़ता हुआ आया और और मुझे बाइक पर बैठने को कहा उस लड़की ने मुझे देखा तो शर्मा कर रह गयी मैं सारा माज़रा समझ चुका था मुझे अब जितना डर लग रहा था शायद उस वक्त नही लगा होगा जब मैंने उसको चुड़ैल समझ कर हाथ छुड़ा लिया था ....खैर हम सब बस स्टैंड पर पहुंचे तो बस वहाँ से निकल रही थी प्रकाश ने बस का पीछा कर के रोका और बाइक किनारे पर खड़ा करके दोनों झट से बस में। चढ़ गए और  मैं कुछ कह पाता कि प्रकाश ने कहा मैं तुम्हारा ये ऐहसान ज़िन्दगी भर नही भूलूंगा ...एहसान मैं कुछ समझता कि उसने बाइक की चाभी हवा में उछाल कर कहाँ की बाइक जहां शादी है वही खड़ी कर देना ......
मै ठंड में पसीने से इस तरह लथपथ था जैसे कोई कटी हुई लास खून से लथपथ होती है...
मैं गया शादी में बाइक खड़ी कर ही रहा था कि अचानक एक आदमी आया और बोला अच्छा तुमने ही कामायनी को भगाया है............उठ.....उठ....दो तीन पड़ाका गालों पर तड़ातड़ पड़ा और आवाज़ आयी का बकत हउवे  है कबसे .....उठ जो  गाय के कोयर डाल के आव........7 बजत ह तनिको होस ह की नाही..........मानो दुनिया ही घूम गयी।

फ्रैंक हसरत नौदरी
काशी हिन्दू विश्व विद्यालय
बनारस

चुभन.........😢

चुभन...........
हृदय में कठिनाइयों का भंडार है ..नही नही ऐसा कैसे हो सकता है ..हृदय तो प्रेम स्नेह का संग्रह है , यद्यपि ये सत्य है तो फिर इंसान चिंतित क्यों होता है आखिर इसकी वजह क्या सो सकती है .......चिंता हर इंसान के जीवन मे सम्भवतः प्रकट होती रहती है क्योंकि हर स्थिति में मानव हृदय परिवर्तित होता रहता है , लेकिन दैनिक ज़ीवन को सुखमय बनाने के लिए परस्पर इंसान को सुखी में रहने का प्रयास  करते रहना चाहिए ।
जो व्यक्ति इन सब को समझ लेता है वो असफताओं से कभी भी पीछे नही हटता है ......बल्कि वो अपनी असफ़लतों से ही सफलता की सीढ़ियां चढ़ने के प्रयास करता है और एक दिन बुलन्दियों को पा लेता है ........

#
हसरत

पापा रोज़ कहाँ चले जाते हो आप

पापा कहाँ चले जाते हो आप !

सुबह सुबह ही तैयार दिखाई देते हो ,
थकते नही हो, लगातार दिखाई देते हो।
रात में आते हो अंधेरों में उजालों की तरह,
सूरज से भी चमकदार दिखाई देते हो ,
टू
हमसब को खूब हँसाते हो आप
पापा फिर कहाँ चले जाते हो आप !

माँ अगर ग़लती से भी डाँट देती तो आप,
रूठकर उससे,प्यार से करते हम से बात आप
ज़िद हर पूरी कर देते हैं आप हम सब की,
हमारी एक छोटी सी तकलीफ से होते हैं दुखी आप,
क्यों नही रहते हो हमेशा आप साथ,
पाप रोज कहाँ चले जाते हो आप!.......

शेष .......

Har baar mai haar nhi sakta

हर बार मैं ही हार नही सकता...

चलते चलते मन्ज़िल तो मिलेगी ही,
कली है आज वो कल तो खिलेगी ही,
चन्द सांसो का सहारा है कि ज़िंदा हैं हम,
दर्द की शाम है एक दिन तो ढ़लेगी ही,
एक जैसा ही सदा ये बाज़ार नही रहता,

हर बार मैं ही हार नही सकता...

वक़्त जीतेगा तो हार हमारी होगी
हा कभी वक्त की तो लाचारी होगी
कौन ख़ुश है यहाँ उसको बुला लाओ
इश्क में हो नतो कुछ और बीमारी होगी,
वो मग़र खुद भी इनकार नही कर सकता ।

हर बार मैं ही हार नही सकता...

Sunday 21 January 2018

Kya ho tum.? Kaun ho tum.?

क्या हो तुम,कौन हो तुम.....?

न देखूं तुझको तो करार क्यों कर हो,
ये दिल भी मग़र बेक़रार क्यों कर हो,
तुम अगर हो कुछ, तो क्यों चले जाते हो?
गर कुछ भी नही हो, तो इंतेज़ार क्यों कर हो,

क्या हो तुम, कौन हो तुम....?

होते अपने तो ख़याल तो होता ,
आने जाने का मलाल तो होता ,
कुछ कहाँ नही, न ज़वाब दिया,
शिकायतों का एक सवाल तो होता ।

क्या हो तुम, कौन हो तुम....?

रात गये ख़्वाब में क्यों आते हो,
हर सवाल, हर ज़वाब में क्यों आते हो,
मान लूँ अपना समझते हो तुम,
सामने फिर मेरे नक़ाब में क्यों आते हो ,

क्या हो तुम, कौन हो तुम....?

अब तुम्हे अपना कहूँ या गैर कहूँ?
क्या कहूँ कुछ भी कहूँ खैर कहूँ ?
सोचता हूँ मैं तुम्हे कुछ न कहूँ लेकिन,
दिल ये कहता है तुझे मैं भी कोई दैर कहूँ,

क्या हो तुम, कौन हो तुम....?

दिल का दर्द भी अब नही सुनता कोई,
दिल भी किस्सा ये मोहब्बत नही बुनता कोई,
तू बता कर के चला जाता तो मुमकिन भी था,
दिल मेरा भी तो सनम प्यार से चुनता कोई।

क्या हो तुम, कौन हो तुम....?

☺फ्रैंक हसरत नौदरी💐

एक सहमी सी आवाज़........

एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2

मैं कैसे कहूँ कि, दूर है वो,
नज़रो में है,और दिल मे भी,
मैं तन्हा हूँ तो भी है वो,
वो साथ मेरे महफ़िल में भी।
मेरे जीवन की आगाज़ थी वो

एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2

रातों में थी जुगनू सी वो,
बागों में थी खुशबू सी वो
जब डाँट पड़े शरमा जाती,
फिर हसने पर मुस्काती वो
हर दिल मे करती राज थी वो।

एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2

वो गयी कहाँ कुछ खबर नही
जहाँ ढूढू मिलती उधर नही ।
थक जाता हूं पर थकन कहाँ
अब दिल को मिलता अमन कहाँ।
हर ज़ुबाँ पे नग़में साज़ थी वो

एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2

गर डॉट दिया तो रोती थी,
वो चुप चुप सी क्यों होती थी,
फिर हसके गले लगालो तो ,
वो धूप सी खिल भी जाती थी
क्यों चली गयी नाराज़ थी वो ?

एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2

क्यों अपनो को वो छोड़ गयी,?
हर ख़्वाब हर सपना तोड़ गयी,
सब खुश थे उसके होने पर ,
कभी हँसने पर कभी रोने पर
इस आँगन की सरताज़ थी वो

एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2

फ्रैंक हसरत .....

तुम शायद सबकुछ भूल गये..........

*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी.........२* वो चाँद कभी होले - होले आग़ोश में यूँ आ जाता था मैं उसका चेहरा पढ़ता था मैं उसका सर सहल...