Sunday 30 May 2021
Saturday 29 May 2021
किसी भी फूल में निकहत न होगी.. frankhasrat /29/05/2021
किसी भी फूल में निकहत न होगी
मिरे रब की अगर रहमत न होगी
तुझे कुछ इश्क़ में हासिल न होगा
कि दिल में जब तिरे ज़ुर्रत न होगी
बुझेगी आग नफ़रत की नहीं गर
तो ये दुनिया कभी जन्नत न होगी
जहाँ लाशों पे इतनी सिसकियाँ हो
वहाँ इंसान की क़ीमत न होगी
है मेरे घर का अब माहौल ऐसा
बुरी आदत बुरी आदत न होगी
ये मज़हब की लड़ाई छोड़ दो तुम
हमारे मुल्क़ में दहशत न होगी
कटे हर रात सजदे में तुम्हारी
कि इसके बाद कुछ 'हसरत' न होगी
Monday 24 May 2021
شاعری میں بھی سلطنت رکھی
ہم نے لفظوں میں ملکیت رکھی
شاعری میں بھی سلطنت رکھی
رب نے سب کچھ عطا کیا اس کو
جس نے سدا اچھی نیت رکھی
پیار حد سے کیا زیادہ پر
ہم نے اپنی بھی اہمیت رکھی
گھر میں دیوار پڑ گئی جیسے
باپ نے مر کے اس پہ چھت رکھی
میں نے بچوں کو بھی پڑھایا اور
جینے مرنے کی بھی بچت رکھی
وہ جو خود کو خدا سمجھتا تھا
اس نے میری بھی خیریت رکھی
ہوں میں ممنون اپنے دشمن کا
ایک اس نے ہی اصلیت رکھی
دل کو تو ٹوٹنا ہی تھا اک دن
اس نے جب نیو ہی غلط رکھی
اور باقی نہی کوئی حسرت
ایک بس چائے ہی کی لت رکھی
#Frankhasrat
کیا کہیں دفن بھی کرنے کی جگہ خالی ہے
آنکھ میں اشک اترنے کی جگہ خالی ہے
دل میں اک درد سنورنے کی جگہ خالی ہے
یہ گنہگار کہاں جائے کہ سب کے دل میں
بس فرشتوں کے ٹھہرنے کی جگہ خالی ہے
اب کوئی راہ کا پتھر نہیں ملنے والا
آؤ چلتے ہیں کہ چلنے کی جگہ خالی ہے
کوئی مجرم ہو گنہگار ہو قاتل ہو مگر
سب کے اک بار سدھرنے کی جگہ خالی ہے
پوچھتے رہتے ہیں آوارہ ہوئے خانہ بدوش
ملک میں کوئی ٹھہرنے کی جگہ خالی ہے
راہ میں کانٹے بچھا کر تو کچھ نہ پاؤ گے
پھول بکھراؤ بکھرنے کی جگہ خالی ہے
ایک بیمار نے مرتے ہوئے پوچھا حسرت
کیا کہیں دفن بھی کرنے کی جگہ خالی ہے
#frankhasrat
Sunday 23 May 2021
क्षणिक सुख की प्राप्ती
*क्षणिक सुख की प्राप्ती* .......
प्रशंसा(तारीफ़) मिठाई के सामान है जो क्षणिक सुख प्रदान करता है और आसानी से मिल जाता है और इसके ज्यादा सेवन से गंभीर बीमारी भी हो सकती है परन्तु आलोचना(तनक़ीद) कड़वी नीम के मानिंद है। जिसके सेवन से इंसानी खून बीमारी मुक्त हो जाता है। कड़वी चीजे हमेशा बुरी नही होती। ठीक उसी तरह आलोचना भी क्षणिक दुःख तो देता है किंतु यह इंसान के सोचने समझने की क्षमता को बुनियादी तौर पर मज़बूत बना देता है। मौजूदा दौर में इंसान को क्षणिक सुख की लत लग गयी है। इस वक़्त हर किसी को दूसरों से ज्यादा बेशर्म होने की होड़ लगी है, लाइक कमेंट और थम्सअप वाले अंगूठे के लिए बड़े बड़े लोग साड़ी सलवार पहन के नाचने और लिपसिंग करने के लिये मजबूर हैं। ऐसा नही है कि ये लत जवानों तक महदूद है बल्कि बड़े, बुज़ुर्ग, स्वघोषित पीर, मौलवी, पण्डित, पुलिस आलाकमान भी इस बीमारी की जद में बराबर मुब्तिला(हिस्सेदार) हैं। मेरा मानना है कि जिसको ये लत लग जाती है उनको सिर्फ तारीफ सुनने से मतलब होता है चाहे वो कैसी भी हो। इस बीमारी ने अबतक न जाने कितनों को मौत के घाट उतार दिया फिर भी लोग समझने को तैयार नहीं वो तो भला हो सरकार का कि जिसने ऐसे वाहियात एप्लिकेशन पर पाबन्दी लगा दी। ऐप बैन होने के बाद तो कुछ लोग बौरा गए उनको दिन में तारे दिखने लगे बेचैनी ऐसी की सरकार को कोसने लगे लेकिन हमारी सरकार तो अच्छी बातों को सुनती ही नहीं यह तो फिर भी बुरी ही थी। हमारे नौजवान पीढ़ी के अंदर इस लत के बाद जो दूसरी लत है वो है नशा, मेरे हिसाब से तंबाकू और तारीफ़ में बहुत समानताएं हैं। दोनों इंसान को अंदर से खोखला कर देती हैं। दोनों के आदती को यही लगता है कि उन्हें इस चीज़ की लत(आदत) नहीं, और तारीफ़ और तम्बाकू दोनों एक साथ चलते हैं। तारीफ मानसिकता का पतन करती है तो नशा जिस्मानी ताकत को कम कर देता है फिर ऐसे व्यक्ति पर किसी बात का कोई असर नहीं होता। ऐसे व्यक्ति को समझाना बहुत मुश्किल हो जाता है। अधिकांश लोग कोशिश भी नहीं करते हैं कि इन खोखली और क्षणिक सुख देने वाली चीजों से बाहर निकल जाएँ। इससे पीड़ित व्यक्ति को तनक़ीद(आलोचना) ज़हर की तरह लगती है। ऐसे लोग आसानी से देखने को मिल जाते है क्योंकि ये हमारे आस पास ही मौजूद हैं और सीने में हवा भर कर कहते ये नशा तो आज चाहे आज छोड़ दे लेकिन यक़ीन करिये ये उतना ही मुश्किल है जितना अपनी जीभ से अपनी नाक को छूना। कुछ लोग तो हद ही कर देते हैं। जो यह कहते नज़र आ जाएंगे कि मुझे अपनी तारीफ़ सुनना बिल्कुल पसन्द नहीं, लेकिन मुझे नहीं लगता ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसे तारीफ़ पसन्द नहीं और यह स्वभाविक है ये होना भी चाहिए लेकिन जब किसी चीज़ की अति हो जाती है तो वह भयंकर बीमारी का रूप धारण कर लेती है। वहीं आलोचनाएं व्यक्तित्व को निखारने और संवारने का काम करती हैं, जैसे माली बाग़ में कटाई छटाई और सिंचाई करके एक सौन्दर्य बाग़ का निर्माण करता है। तनक़ीद भी ऐसी ही है।जैसे तारीफ़ क्षणिक सुख प्रदान करता है वैसे ही तनक़ीद क्षणिक दुःख। अब यह आप पर है कि आपको क्षणिक सुख चाहिए या सुखद जीवन। थोड़ी बहोत प्रशंसा भी ज़रूरी है हौसला अफ़ज़ाई के लिए लेकिन शर्त यह है कि इंसान उसका आदि न हो.......अगर आप भी इस मीठे ज़हर के आदि हो चुके हैं तो अपने अंदर से इस ज़हर को जितना जल्द हो सके दूर कर लें। और ख़ुद की तरक़्क़ी के लिए तनक़ीद का रास्ता अपना लें.........
@Frankhasrat
चंदौली-उत्तर प्रदेश
अब अली और राम मत कीजिए...... फ्रैंक हसरत
आप यूं कत्लेआम मत कीजिए
किस्सा ऐसे तमाम मत कीजिए
जो न हासिल हो अच्छे कामों से
आप उसमें तो नाम मत कीजिए
जब ज़रूरत हो याद कर लेना
सुबह, दोपहर, शाम, मत कीजिए
साहेब मज़बूरी में घर से निकला हूँ
आप मेरा चलान मत कीजिए
अब तो सब मर रहे हैं सड़कों पर
अब तो जीना हराम मत कीजिए
अब नहीं सुनना मौत की खबरें
अब कोई भी ऐलान मत कीजिए
सुनिए! एक काम कीजिए साहेब
आप कोई भी काम मत कीजिए
मुल्क़ आज़ाद हो चुका अपना
फिर से इसको गुलाम मत कीजिए
यह सियासत का खेल है इसको
हिन्दू-मुस्लिम बनाम मत कीजिए
हम समझने लगे हैं सब साहब
अब अली और राम मत कीजिए
जान हसरत की फिर भी हाज़िर है
भले दुआ सलाम मत कीजिए
FrankhasraT
29/04/2021
एक बस चाय ही की लत रख्खी.....फ्रैंक हसरत
हमने लफ़्ज़ों में मिल्कियत रख्खी
शायरी में भी सल्तनत रख्खी
रब ने सबकुछ अता किया उसको
जिसने अच्छी सदा नियत रख्खी
प्यार हद से किया ज़ियादा पर
हमने अपनी भी अहमियत रख्खी
घर में दीवार पड़ गयी जैसे
बाप ने मर के उसपे छत रख्खी
मैंने बच्चों को भी पढ़ाया और
जीने मरने की भी बचत रख्खी
वो जो ख़ुद को ख़ुदा समझता था
उसने मेरी भी ख़ैरियत रख्खी
हूँ मैं ममनून अपने दुश्मन का
एक उसने ही असलियत रख्खी
दिल को तो टूटना ही था इक दिन
उसने जब नींव ही ग़लत रख्खी
और बाक़ी नहीं कोई हसरत
एक बस चाय ही की लत रख्खी
Thursday 20 May 2021
बचना हुआ आसान कोरोना के कहर से .....फ्रैंक हसरत
बचना हुआ आसान कोरोनो के कहर से
ऐसी हवा चली है मोहम्मद के शहर से
तेरा इलाज कर नहीं सकता कोई तबीब
तू जी गया है माँ की दुवाओं के असर से
ठहरो,रुको, धीरे चलो,अबशोर न करना
प्यासों को देख कहती समंदर ये लहर से
पत्तों की तरह गिरती लाशों से है सीखा
मरना बहुत आसान है गोली से ज़हर से
ऐसे में फिर से उठना आसान नहीं है
जो शख़्स गिर गया हो अपनी ही नज़र से
लिखी थी तेरी याद में, मैंनें भी इक ग़ज़ल
कह दिया उस्ताद ने, खारिज़ है बहर से
#frankhasrat
Wednesday 19 May 2021
हर एक कोहराम पर खुश हो रहे हैं.....#Frankhasrat
तेरे अहकाम पर खुश हो रहे हैं
सभी आलाम पर खुश हो रहे हैं
मोहब्बत आज भी ज़िंदा है दिल में
हाँ तुम्हारे नाम पर खुश हो रहे हैं
ख़ुदा के नाम को बदनाम करके
उसी इक़दाम पर खुश हो रहे हैं
हक़ीक़त से जो वाकिफ़ ही नहीं हैं
झूठे इनआम पर खुश हो रहे हैं
किया था तूमने जो मिलने का वादा
अभी तक पैग़ाम पर खुश हो रहे हैं
अभी हैं इश्क़ के बाज़ार में हम
अभी नीलाम पर खुश हो रहे हैं
नशा ऐसा है आँखों का नशा कि
सभी इस जाम पर खुश हो रहे हैं
बहार ए सुब्ह से हैं ग़ाफ़िल परिंदे
जो ढ़लती शाम पर खुश हो रहे हैं
सफ़र ये ख़त्म हो जाएगा एक दिन
उसी फ़र्जाम पर खुश हो रहे हैं
ख़ामोशी चीख़ती है इस क़दर कि
हर एक कोहराम पर खुश हो रहे हैं
अग र चे नाकाम ही होना है 'हसरत
मगर हर एक गाम पर खुश हो रहे हैं
#frankhasrat
17/05/21
दिल में इक दर्द ठहरने की जगह ख़ाली है.....#frankhasrat
आँख में अश्क़ उतरने की जगह ख़ाली है
दिल में इक दर्द सँवरने की जगह ख़ाली है
ये गुनहगार कहाँ जाये कि सबके दिल में
बस फरिश्तों के ठहरने की जगह ख़ाली है
अब कोई राह का पत्थर नहीं मिलने वाला
आओ चलते हैं कि चलने की जगह ख़ाली है
कोई मुजरिम हो गुनहगार हो क़ातिल हो मगर
सबके इक बार सुधरने की जगह ख़ाली है
पूछते रहते हैं आवारा हुए खानाबदोश
मुल्क में कोई ठहरने की जगह ख़ाली है
राह में काटें बिछाकर तो कुछ न पाओगे
फूल बिखराओ बिखरने की जगह ख़ाली है
'एक बीमार ने मरते हुए पूछा 'हसरत
क्या कहीं दफ़्न भी करने की जगह ख़ाली है
#frankhasrat
एक न एक दिन शादी करके घर से दूर तो जाएगी / फ्रैंक हसरत
एक ना एक दिन शादी करके घर से दूर तो जाएगी.........२
एक लड़की जो बरसों पहले ख़्वाब सजोया करती थी,
माँ से बिछड़ने के डर से ही,छुप छुप रोया करती थी।
जाने कैसे रह पायेगी, पापा की नज़रों से दूर,
जो बचपन से आज तलक बस उन्हें हसाया करती थी,
बेबस और लाचार बनी है,फिर ना लौट के आएगी,
एक ना एक दिन शादी करके घर से दूर तो जाएगी.......२
कल तक घर के आँगन में जो मस्त हवा सी बहती थी,
कितना सुन्दर घर है मेरा, हक़ से ये भी कहती थी।
कितना मुश्किल होगा उसको छोड़ के जाना बचपन को,
माँ की डांट पर पापा से वो अपनी शिकायत कहती थी,
कबतक रहेगी इस बगियाँ में फूल है वो मुर्झायेगी,
एक ना एक दिन शादी करके घर से दूर तो जाएगी......२
एक नन्ही सी कली कभी थी खिलकर जब वह फूल हुई,
काटों में जो खिलना सिखा इतनी सी बस भूल हुई,
रह जाती है अंतर मन मे तड़प तड़प कर अपने ही,
ये दुनियां निर्दयी बहोत है ₹।हर वक्त उसे तड़पायेगी।
एक ना एक दीन शादी करके घर से दूर तो जाएगी.......२
बचपन की सुनहरी यादों को वो घर मे अपने छोड़ गई,
अब सहेलियाँ घर क्यों आये सब से रिश्ता तोड़ गयी,
बूढ़े हो गए मम्मी पापा आँगन में उदासी छाई है,
गए बहोत दिन बीत गए हैं जाने कब की आई है?
अब अपना ना रहा कोई भी किसको हाल सुनायेगी?
एक न एक दिन शादी करके घर से दूर तो जाएगी......२
माँ बाप और भाई बहन की यादें उसे सताती,
मैं खुश हूँ! कहकर वो अपना कितना दर्द छिपाती है।
रो देती होगी अक्सर वो अपनी ही आंखों आंखों में,
कितनी बड़ी हो गयी है वो पलकों में अश्क छिपाती है
कबतक दर्द सहेगी बिटिया एक दिन तो बतलायेगी......
एक ना एक दिन शादी करके घर से दूर तो जाएगी.....२
फ्रैंक हसरत
جو میری روح میری جان بنا بیٹھا ہے،
جو میری روح میری جان بنا بیٹھا ہے،
کیسی سازش ہےکہ انجان بنا بیٹھا ہے۔
مجھکو حاصل ہو عبادت میں صوفی کا خطاب،
تیری چاہت میرے دل کا ارمان بنا بیٹھا ہے۔
اس حکومت کی مداحی کہاں ممکن ہے۔
چور خود تخت پر جب سلطان بنا بیٹھا ہے۔
روز مرتے ہوں جہاں بھوک سے لاکھوں بچے،
کتنا بے بس وہاں انسان بنا بیٹھا ہے۔
بٹنا امت کا فرقوں میں بڑی بات نہیں،
جب آدمی خود یہاں شیطان بنا بیٹھا ہے۔
لَوٹ کر آتے نہں چھوڑ کے جانے والے،
حسؔرت کیوں اتنا تو پریشان بنا بیٹھا ہے۔
فرینک حسؔرت
تیرے حق میں یہ بھلا ہے اللہ جانتا ہے
مرا جو بھی مسئلہ ہے اللہ جانتا ہے
اچھا ہے یا برا ہے اللہ جانتا ہے
مجھ پر میرے عزیزوں شک کی نظر نہ ڈالو
نہیں کوئ معاملہ ہے اللہ جانتا ہے
میری بات تیرے دل پر بڑی نا گوار گزری
تیرے حق میں یہ بھلا ہے اللہ جانتا ہے
میرے دل میں تو ہی تو ہے میرا دل دکھانے والے
کیا یہی میری سزا ہے اللہ جانتا ہے
مجھے لے گئ کہاں تک میرے دوستوں کی سازش
میرے راز سب عیاں ہے اللہ جانتا ہے
مجھ سے جدا ہوا تو میری جان لے گیا وہ
پھر بھی میری دعا ہے اللہ جانتا ہے
تمہیں خوش رکھے خدارا میرا دل جلانے والے
کیوں کہوں میں بے وفا ہے اللہ جانتا ہے
تیری بات تجھ سے حسؔرت تیرے یار کہ نہ پائے
کس بات کا گلہ ہے اللہ جانتا ہے
فرینک حسؔرت
एक धुँधली सी याद.....फ्रैंक हसरत ( यादें)
न जाने क्यों सायबर लाइब्रेरी में आज भी कुर्सियों की तलबिचल, पंखों की सरसराहट और माउस और किब्रोर्ड के खटपट के साथ आते जाते लोगों की कदमचहली में आज भी कानों को आपके कदमों की धनक और दिलो दिमाग़ पर आपके आने का गुमान होता है.....नज़रों को आपके न होने का यकीन ही नहीं होता हर आते जाते कदमों को बहोत देर तक देखती है और आपके होने का एहसास दिल ओ दिमाग़ को दिलाने की कोशिश में में हज़ारों बार नाकाम हो चुकी है मगर उसके हौसलों और जज़्बों में हमेशा बढ़ोतरी होती रही है...........अभी भी ऐसा लगता है कि बस आप आएंगे और कहेंगे चलिए........चलिए बाहर से आते हैं कितना पढ़ेंगे......चाय पीकर❤️ इसी ख्याल में डूबा हुआ ये जिस्म ओ जा कभी कभी बेमतलब उठ खड़ा होता है फिर आपका न होना इसे अंदर तक झिंझोड़ कर रख देता है और कई मिनटों तक अपनी नाकामी और और आपके ख़यालों के बीच लड़ता रहता है...........फिर सामने रखी किताबों में अपने नाकामियों का सबब ढूंढने में लग जाता है..............आज फिर याद आ गए हो तुम........
#frankhasrat
चलो भी अब! / फ्रैंक हसरत (कहानी)
VT पर ठीक 5 बजे मैं मिलूँगी......अंकित ने हँसी को छिपाने के लिए इधर उधर देखने लगा...मैंने जो कहा सुना तुमने...??? हल्की सी हँसी के साथ अंकित ने जवाब दिया हाँ पाँच बजे कल....VT.... विटी मतलब विश्वनाथ मंदिर मैं आपको बताना भूल गया VT को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का दिल कहना ग़लत न होगा....रविवार शाम पाँच बजे....श्रेया ने अंकित से मिलने का वादा किया था ....रोज़ कितने दिल मिलते हैं यहाँ और चाय के गुच्चड की तरह कितने दिल टूट कर बिखरते भी हैं........अंकित ठीक 4 बजे पहुंच गया और श्रेया को हर आती जाती नौजवान और खूबसूरत लड़कियों में तलाश करता क़रीब क़रीब 45 मिनट में न जाने कितनी चाय पी और गुच्चड को ज़मीन पर गिराता और उसके टूटे हुए हिस्सों पर अपनी नज़रे गड़ाता लेकिन उसकी नज़रें श्रेया को ढूढना चाहती थी ......पाँच बज चुके थे......इस बीच अंकित के हाथ में ये सातवीं चाय का मटका था जिसको वो तोड़ना तो चाहता था लेकिन तोड़ नहीं रहा था.......5 बजकर पाँच मिनट हुए थे कि अंकित को किसी की आवाज़ सुनाई दी.....उसने पलट कर देखा तो....एक सतरह साल की निहायत खूबसूरत लड़की जिसके बाल घुँघराले और घने थे ब्लैक जीन्स और पिले रंग के टॉप में वो उगते सूरज की तरह थी.....उसके चेहरे पर लालिमा और लट दोनों थे.....गालो पर दोनों तरफ डिंपल पड़ रहे थे....रंग बिल्कुल साफ़ था......उसके अचानक से हाथ रखने से अंकित के मुँह से श्रेया का नाम निकल गया था....जी आप......आप कौन...उस सतरह साल की लड़की ने अंकित के इस सवाल से खिलखिला उठी अंकित को शदीद शर्मिन्दगी का एहसास हुआ......आप मुझे नहीं जानते??? माफ कीजियेगा मैं ऐसी ही हूँ मुझे हँसी आ जाती है...वो श्रेया ने कभी मेरे बारे में नहीं बताया....???? नहीं तो...वैसे श्रेया है कहाँ?? अंकित ने हक़ जताते हुए पूछा....क्यों कोई काम था आपको उससे??? उस घुँघराले बाल वाली लड़की ने पूछा....अंकित के पास कोई जवाब नहीं था............चलिए न चाय पीते हैं....अंकित बिना मन के हँसा.....और उस लड़की के पीछे हो लिए जैसे इंजन के पिछे डिब्बे चलते हैं...उसने अंकित को चाय जब दिया तो अंकित के हाथ में वो गुच्चड था जिसे अंकित तोड़ना चाह रहा था......अंकित ने पास रखे ड्रम में गुच्चड फेंका लेकिन वो असफल रहा और वो टूटकर बिखर गए...आसपास खड़े लोगों ने देखकर खूब हँसा जैसा कि आजकल लोग किसी की नाकामी पर हँसते हैं.......दोनों ने चाय पी बातें शुरू की कुछ देर तक यूँही टहलते रहे....अंकित खो गया था दुकान की लाईट जलनी शुरू हो गयीं थी सूरज भी अपने घर की तरफ जाने को तैयार था लेकिन अंकित के कानों में वही आवाज़....ठीक है कल विटी पर पाँच बजे.....गूँज रही थी...........श्रेया के आने की बात जब उस लड़की ने कही तो अंकित उठ खड़ा हुआ चारो तरफ नज़रे घुमाई........पीछे मुड़ा तो श्रेया ठीक उसके सामने खड़ी थी........हाथ में सिंधुर की डिबिया और एक छोटा सा सुनहरा डिब्बा था.......श्रेया ने उस सतरह साल की लड़की की तरफ़ देखा और मुस्कुराते हुए बोली.....लो आज तुम्हारा ख़्वाब मुकम्मल हो जाएगा.......अंकित की निःशब्द खड़ा रह गया.........पीछे से किसी ने लड़के ने आवाज़ दी ओहो श्रेया डार्लिंग मैंने तुम्हें कहाँ नहीं ढूंढा................चलो भी अब!
फ्रैंक हसरत
मैं उसे भूलने की ज़िद करता......फ्रैंक हसरत
मैं उसे भूलने की ज़िद करता...?
ये दुआ रब से मांगता था मैं
लेकिन इतना तो जानता था मैं
मैं उसे भूल ही नहीं सकता
दूर मैं रह ही नहीं सकता
और कोशिश की भूल जाऊं मैं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता.....२
ऐसा लगता था आरज़ू है मेरी
मैं कोई गुल वो खुशबु है मेरी
उसके आने से मैं महक जाता
उसको देखे से मैं बहक जाता
डर हवा में कहीं न उड़ जाऊं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता....२
फिर भी मिलने की आस होती
भले ही वह मेरे पास होती है
एक उसके न मुस्कुराने से
सारी दुनियाँ उदास होती है
लिख ग़ज़ल कोई गुनगुनाऊँ मैं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता....२
मेरी यादों में एक कमी बनकर
मेरी आँखों की वो नमी बनकर
मेरी पलकों में फिर रहा है वो
मेरी अश्कों में गिर रहा है वो
उस मोती को कैसे रोक पाऊँ मैं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता....२
दिल जिगर नज़र में रहता है
एक परिंदा शजर में रहता है
मैं एक सन्नाटा हूँ सहरा का
वो एक हंगामा शहर में रहता है
कैसे मुमकिन है इन्हें मिलाऊँ मैं
फिर उसे भूलने की ज़िद करता
मैं उसे भूलने की ज़िद करता....२
फ्रैंक हसरत
एक सहमी सी आवाज़ थी वो....फ्रैंक हसरत
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
मैं कैसे कहूँ कि, दूर है वो,
नज़रो में है,और दिल मे भी,
मैं तन्हा हूँ तो भी है वो,
वो साथ मेरे महफ़िल में भी।
मेरे जीवन की आगाज़ थी वो
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
रातों में थी जुगनू सी वो,
बागों में थी खुशबू सी वो
जब डाँट पड़े शरमा जाती,
फिर हसने पर मुस्काती वो
हर दिल मे करती राज थी वो।
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
वो गयी कहाँ कुछ खबर नही
जहाँ ढूढू मिलती उधर नही ।
थक जाता हूं पर थकन कहाँ
अब दिल को मिलता अमन कहाँ।
हर ज़ुबाँ पे नग़में साज़ थी वो
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
गर डॉट दिया तो रोती थी,
वो चुप चुप सी क्यों होती थी,
फिर हसके गले लगालो तो ,
वो धूप सी खिल भी जाती थी
क्यों चली गयी नाराज़ थी वो ?
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
क्यों अपनो को वो छोड़ गयी,?
हर ख़्वाब हर सपना तोड़ गयी,
सब खुश थे उसके होने पर ,
कभी हँसने पर कभी रोने पर
इस आँगन की सरताज़ थी वो
एक सहमी सी आवाज़ थी वो..2
फ्रैंक हसरत
असहाय! हूँ ....(कविता) #फ्रैंक_हसरत
असहाय* (कविता)
असहाय हूँ असहाय हूँ........2
कट गए हैं हाँथ-पाँव मेरे और
शरीर में जान भी बाक़ी नहीं
बुझ गया हो जैसे मन का दीपक
नयन में मेरे ऐसे अंधकार होने लगा
मैं किसी विधवा के जैसी हाय! हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ..........2
चुप खड़ी लाचार बेबस की तरह
मैं गुलामो की तरह बस जी रही
मेरी दुनियाँ मेरे बस में भी नहीं
इतनी बेबस इतनी मैं लाचार हूँ
जैसे खुटें में बंधी मैं गाय हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ..........2
मैं समंदर में किसी तूफान सी
बढ़ रहे तूफान में उफ़ान सी
है बला का शोर मेरे जिस्म में
है खामोशी किस क़दर अंदर मेरे
कम पानी में डूबती इक नाय हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ.............2
हो रहा है क़त्ल हर कानून का
इंसान के हक़ का और जुनून का
मेरी इज़्ज़त ताख पर रख दी गयी
मेरे ऊपर आरोप है मेरे खून का
मैं किसी झूठे की सच्ची रॉय हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ .........2
सूखे पत्तों की तरह गिरती रही
मैं जंगलों में दरबदर फिरती रही
मौत भी आई तो आई इस तरह
मरने के ख़ातिर भी मैं मरती रही
ज़िन्दगी जीने का कोई उपाय हूँ।
असहाय हूँ असहाय हूँ.........2
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तुम शायद सबकुछ भूल गये..........
*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी.........२* वो चाँद कभी होले - होले आग़ोश में यूँ आ जाता था मैं उसका चेहरा पढ़ता था मैं उसका सर सहल...
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*तुम शायद सबकुछ भूल गए जब बात हमारी होती थी.........२* वो चाँद कभी होले - होले आग़ोश में यूँ आ जाता था मैं उसका चेहरा पढ़ता था मैं उसका सर सहल...
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VT पर ठीक 5 बजे मैं मिलूँगी......अंकित ने हँसी को छिपाने के लिए इधर उधर देखने लगा...मैंने जो कहा सुना तुमने...??? हल्की सी हँसी के साथ अंकि...